क्या करें ये पर्दे की दुनिया,
पर्दे में रहना पसंद करती है।
झूठ पसंद है इन्हे,
झूठ की ही नुमाइश करती है।
चारों तरफ शोर होता है उनका,
जो दुनिया के हां में हां करती है
अब क्या कहूं, मैं हूं अबोध नादान !
ना जाने क्यों ?
मेरी शराफ़त भी इन्हे ही सलाम करती है।।
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