हर कोई कैद है,
अपने ही दहलीज में।
यहां मेहरूम,
किस किस को कहोगे।
उड़ना तो खुली आसमान में,
हर कोई चाहता है।
लेकिन बिना पंखों के,
उड़ने के लिए किस किस को कहोगे।
ये ज़माना दो चहरा लेके घूमता है।
एक तरफ कहता है की आगे बढ़ो,
और दूसरी तरफ घर में ही दबाता है।
बताओ ना किस किस को रोकोगे,
किस किस को कहोगे।
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